न अपनी कहना न मेरी सुनना कोई सुनेगा तो क्या कहेगा अकेले रोना अकेले हँसना कोई सुनेगा तो क्या कहेगा ढलक के क़दमों पे आ के गिरना ये हालत-ए-बे-ख़ुदी में आँचल ख़याल इतना भी अब न रखना कोई सुनेगा तो क्या कहेगा ये बे-झिझक ज़ुल्फ़ की बग़ावत निगाह-ओ-रुख़सार-ओ-लब पे क़ब्ज़े सँवरने वालों का ये बिखरना कोई सुनेगा तो क्या कहेगा समझ न साँसों को बोझ इतना उदास रहना भी ख़ुद-कुशी है ख़ुद अपनी हस्ती तबाह करना कोई सुनेगा तो क्या कहेगा कहो कि अब आएगी क़यामत तुम्हें नहीं है मेरी ज़रूरत तुम्हारा यूँ फ़ैसले से हटना कोई सुनेगा तो क्या कहेगा ढलकते अश्कों का राज़ खोलो बताओ क्या ग़म है कुछ तो बोलो हमारे होते उदास रहना कोई सुनेगा तो क्या कहेगा हज़ार चाहा मना लूँ 'अनवर' मगर वो अब तक ख़फ़ा हैं मुझ से क़रीब रहते हुए न मिलना कोई सुनेगा तो क्या कहेगा