इश्क़ तेरे से लगावे न ख़ुदा आर मुझे न करे दाम-ए-रिहाई में गिरफ़्तार मुझे हुस्न और इश्क़ में एक तौर से निस्बत है ज़रूर चश्म-ए-बीमार तुझे दी है दिल-ए-ज़ार मुझे यार आया पे मुझे होश न था क्या कहिए न किया इस दिल-ए-दुश्मन ने ख़बर-दार मुझे संग-ए-तिफ़्लाँ की मैं उम्मीद पे हूँ दीवाना तिसपे देते हैं तग़ाफ़ुल से ये आज़ार मुझे जब से नज़्ज़ारा किया तर्क हुआ हूँ दिल-ए-सर्द गर्म रखता था 'यक़ीं' शोला-ए-दीदार मुझे