इश्क़ असीर-ए-तग़य्युरात नहीं ये वो दिन है कि जिस की रात नहीं पास जब तुम नहीं हयात नहीं मुझ को एहसास-ए-काएनात नहीं इश्क़ की ज़िंदगी में ग़म ही सही सादगी है तकल्लुफ़ात नहीं एतिबार-ए-नज़र बढ़ा जब से ए'तिबार-ए-तजल्लियात नहीं इल्तिफ़ात-ए-नज़र तो है लेकिन अब वो अंदाज़-ए-इल्तिफ़ात नहीं तुम हर इक रंग में हो जल्वा-नुमा कोई क़ैद-ए-तअ'य्युनात नहीं कितने पर्दे नज़र के हाइल हैं अब यक़ीन-ए-मुशाहिदात नहीं ऐसे ज़ौक़-ए-नज़र की क्या हस्ती गर शुऊ'र-ए-तजल्लियात नहीं यूँ छुपाता हूँ दर्द-ए-दिल उन से जैसे ये उन के दिल की बात नहीं मैं अगर तर्क-ए-आरज़ू कर दूँ फिर कोई मक़्सद-ए-हयात नहीं ये हवाएँ ये फूल ये कलियाँ हर नज़र के तसर्रुफ़ात नहीं 'साजिद' अपना ये सज्दा-ए-मक़्बूल कुछ ये क़ैद-ए-तअ'य्युनात नहीं