वो रूदाद-ए-ग़म पर बहुत मुस्कुराए मगर फिर भी आँखों में आँसू भर आए नज़र मेरी बहकी क़दम लड़खड़ाए मोहब्बत में क्या क्या मक़ामात आए मोहब्बत का बंदा वफ़ा का पुजारी तिरे दर से हम ने बहुत नाम पाए न जाने कब उन की नज़र का तलव्वुन मिटा कर बनाए बना कर मिटाए कभी इंतिज़ार और कभी बे-क़रारी मोहब्बत में हम ने ये आराम पाए कली दिल-गिरफ़्ता उदासी गुलों पर चमन में मुझे तुम बहुत याद आए शब-ए-ग़म उन्हीं के तसव्वुर में गुज़री कभी आह खींची कभी मुस्कुराए निगाहों से उन की निगाहें मिला कर हम अपना फ़साना सुनाने न पाए इक ऐसी मसर्रत का लम्हा भी आया न तुम मुस्कुराए न हम मुस्कुराए नहीं आस्ताँ कोई सज्दे के क़ाबिल कहाँ तेरा 'साजिद' सर अपना झुकाए