इश्क़ है नाम ग़म उठाने का यास उनवाँ है इस फ़साने का मैं कि पाबंद-ए-वज़्अ-ए-फ़ितरत हूँ शौक़ है उन को आज़माने का बर्क़ बेताब रौशनी ज़ाहिर हाए अंदाज़ मुस्कुराने का हाए अहद-ए-शबाब का आलम है ये मौसम फ़रेब खाने का शायद उन को भी हो 'अज़ीम' मलाल शीशा-ए-दिल के टूट जाने का