उल्फ़त का जुर्म करते ही दीवाना हो गया ऐवान-ए-इश्क़ मेरे लिए थाना हो गया आवागमन है या कि तिलिस्म-ए-निगाह-ए-हुस्न इंसान था सग-ए-दर-ए-जानाना हो गया कुछ सख़्त-जाँ के क़त्ल का सदमा नहीं उन्हें उस की है निगह तेग़ में दन्दाना हो गया लाले की आग फूलों की आँखें चढ़ी हुईं सेहन-ए-चमन जो था वो मदक-ख़ाना हो गया इंसाफ़ क्या किया है अदालत ने हुस्न की ऐश-ओ-निशात-ए-उम्र का जुर्माना हो गया पीरी के भी करिश्मे निराले जहाँ में हैं क़ंधार का अनार था बे-दाना हो गया