इश्क़ का हम से नाम बाक़ी है हुस्न का एहतिराम बाक़ी है पीने वाले तो उठ गए कब के हाँ मगर दौर-ए-जाम बाक़ी है शौक़-ए-दीदार-ए-ख़ास ख़त्म हुआ तलब-ए-दीद-ए-आम बाक़ी है किस को ख़ासान-ए-मय-कदा हैं याद मय-कदे ही का नाम बाक़ी है बावजूद-ए-जफ़ा-गरी-ए-अजल ज़िंदगी का दवाम बाक़ी है रूह-ए-दैर-ओ-हरम से काम नहीं एहतिराम-ए-मक़ाम बाक़ी है दिल में इज़्ज़त न जज़्बा-ए-इख़्लास रस्म-ओ-राह-ए-सलाम बाक़ी है रहरवो ये समझ के चलते चलो मंज़िल अब चंद गाम बाक़ी है किस को परवा-ए-नंग-ओ-नाम मगर हवस-ए-नंग-ओ-नाम बाक़ी है कुछ तो हो शग़्ल-ए-बादा-ए-गुल-रंग कैफ़-ए-गुलफ़ाम-ए-शाम बाक़ी है जिस्म आज़ाद हो गए लेकिन रूह-ओ-ज़ेहन-ए-ग़ुलाम बाक़ी है तेरे ही दम से कुछ न कुछ 'मग़मूम' आबरू-ए-कलाम बाक़ी है