इश्क़ करना है हमें मरने से घबराएँगे क्या गर्दिश-ए-अफ़्लाक को ख़ातिर में हम लाएँगे क्या कितने बरसों में लगी है आँख ऐ आक़ा मिरी दीद के मुश्ताक़ को चेहरा न दिखलाएँगे क्या जाने लेते हैं दिलों का मुद्दआ मौललवरा हम करेंगे अर्ज़ क्या और ज़ख़्म दिखलाएँगे क्या दिल की शादाबी से हैं चेहरे की सब शादाबियाँ दिल न बदलेंगे तो फिर चेहरे बदल जाएँगे क्या आप ने समझा दिए हैं सारे असरार-ओ-रुमूज़ फ़लसफ़ी 'साबिर' हमें अब राज़ समझाएँगे क्या