इश्क़ के माजरात याद नहीं जुज़ तिरे कोई बात याद नहीं याद है क़िस्सा-ए-अलिफ़-लैला सबक़-ए-दीनियात याद नहीं लगी बाज़ी थी हुस्न-ओ-उलफ़त में किस ने फिर खाई मात याद नहीं गर्म रहती थी जिन से बज़्म-ए-ऐश अब तो वो तज़किरात याद नहीं मुँह लगी जब से दुख़्त-ए-रज़ 'जौहर' लुत्फ़-ए-क़ंद-ओ-नबात याद नहीं