इश्क़ में चाहिए ये कर जाना कल के मरने से आज मर जाना कीजिए ज़ब्ह शौक़ से मुझ को सर का जाना है दर्द-ए-सर जाना कुछ समझ कर निकालिए मुझ को पहले कहिए कि है किधर जाना दिल को समझे तो हम यही समझे एक दुश्मन को अपने घर जाना अभी आए हो और कहते हो है मुझे तो ज़रूर घर जाना ख़ूब खिलवाई ठोकरें दिल ने हम ने गुमरह को राहबर जाना ले गया शौक़ बज़्म-ए-दुश्मन में इस को क्यों मैं ने बा-ख़बर जाना ख़ूब आता है आप को साहिब कभी कहना कभी मुकर जाना वो चले आज बज़्म-ए-दुश्मन में जज़्ब-ए-दिल कुछ तो काम कर जाना जाओ जाओ वो 'लुत्फ' कहते हैं ज़ीस्त से चाहिए गुज़र जाना