जब यक़ीं को गुमाँ में नहीं खो सकी हार कर जीत मेरी तभी हो सकी ख़्वाब में जब मिली ख़ुद से मैं दफ़अ'तन रात भर जाग कर चैन से सो सकी एक मुद्दत से आँखें मिरी ख़ुश्क थीं आज आहट की दस्तक पे कुछ रो सकी आसमाँ में सहर का सितारा उगा तब कहीं हिज्र काँधे पे मैं ढो सकी जब ज़मीं से समुंदर की मिट्टी मिली नाम-ए-'निकहत' के पौदे को मैं बो सकी