इश्क़ सादिक़ हो तो ख़ुद्दार-नुमा होता है ख़िज़्र भी वर्ना जो मिल जाए तो क्या होता है और तो आप से ऐ वाइ'ज़ो क्या होता है एक ले दे के जहन्नुम का भला होता है दिल जो आमादा-ए-इज़हार-ए-जफ़ा होता है ख़ंदा-ज़न शेवा-ए-अरबाब-ए-वफ़ा होता है बुत बने बैठे हैं बुत कहिए तो होते हैं ख़फ़ा ये समझते हैं कि पत्थर तो ख़ुदा होता है कभी इस फूल को छेड़ा कभी उस को झटका और क्या काम तिरा बाद-ए-सबा होता है अर्सा-ए-इश्क़ नहीं अहल-ए-हवस का मैदाँ ज़िक्र-ए-ख़ंजर ही से दम उन का फ़ना होता है दीन की आड़ में दुनिया को कमाने वाले देखना हश्र के मैदान में क्या होता है आज उस दर पे है कल उस पे है परसों उस पर माल-ओ-इक़बाल हक़ीक़त में गदा होता है देख कर रंग-ए-हरीफ़ान-ए-ज़माना 'शाग़िल' शिकवा होता है मगर शिकवे से क्या होता है