तेरा वा'दा है सबब दिल के बहल जाने का मौसम हिज्र में हर फूल के खिल जाने का ख़ामुशी आग लगाती है मिरे चारों ओर मुझ को अफ़्सोस है अल्फ़ाज़ के जल जाने का क़त्ल गाहों में रखे आइने देखे तो कहा कितना सामान था क़ातिल के दहल जाने का उम्र-ए-रफ़्ता के हर इक ताक़ पे जलता है दिया तुम से मिलने का बिछड़ने का सँभल जाने का मौसम-ए-हिज्र हो या वस्ल की वो रात हसीं 'सीमा' धड़का सा लगा रहता है ढल जाने का