सर को बचाते या दर-ओ-दीवार बेचते सर की हिफ़ाज़तों में क्या दस्तार बेचते शोहरत के मोल ख़ूब लगे शहर में मगर हम मोहतरम कहाँ थे जो किरदार बेचते इस काँपती ज़मीन ने सब ख़ाक कर दिया वर्ना हम आरज़ुओं के मीनार बेचते होता जो इख़्तियार मिरे हाथ में तो फिर बस्ते ख़रीद लाते ये हथियार बेचते क़ानून को जो 'सीमा' समझ लेते आज हम तो भूक और जहल के आज़ार बेचते