किरन सी एक अंधेरे में झिलमिलाई है ये किस की चश्म-ए-सहर-ख़ेज़ मुस्कुराई है ठहर नसीम ज़रा हम भी साथ चलते हैं गुल-ओ-बहार से अपनी भी आश्नाई है जुनूँ की राह में रुकते नहीं हैं दीवाने फ़रार एक दलील-ए-शिकस्ता-पाई है ये जज़्ब-ए-दिल का असर है कि इक तमाशा है इधर हुज़ूर का बंदा उधर ख़ुदाई है गिला किसी से न कर तेरे कूचे तक साक़ी हमें भी गर्दिश-ए-दौराँ ही खींच लाई है बुझे दियों की ज़बानें धुआँ उगलती हैं नई सहर ने सफ़-ए-तीरगी बिछाई है वही गुलों पे उदासी वही फ़ज़ा में सुकूत सुना है 'ताज' चमन में बहार आई है