इसी उम्मीद पे शब भर जागे हम भी सो लें जो मुक़द्दर जागे मुंतज़िर है निगह-ए-अहल-ए-वफ़ा नोक-ए-नेज़ा पे कोई सर जागे बुझ गई शम्अ सितारे गुम हैं जाने कब शब का मुक़द्दर जागे कौन ख़्वाबों में बसा है आख़िर चाँदनी घर में उतर कर जागे हर्फ़-ए-हक़ आते ही लब पर 'मोहसिन' वक़्त के हाथ में ख़ंजर जागे