मंज़र-ए-आख़िर-ए-शब याद आया उठ के जाना तिरा जब याद आया वक़्त-ए-आख़िर था लगी थी हिचकी अपना वा'दा उन्हें कब याद आया ज़ख़्म क्यों देख रहे हो दिल के क्या मुदावा तुम्हें अब याद आया फिर कोई फ़ित्ना उठेगा शायद बे-सबब मैं उन्हें कब याद आया उस ने फिर याद किया है 'मोहसिन' दिल धड़कने का सबब याद आया