इतना चुप-चाप तअल्लुक़ पे ज़वाल आया था दिल ही रोया था न चेहरे पे मलाल आया था सुब्ह-दम मुझ को न पहचान सका आईना मैं शब-ए-ग़म की मसाफ़त से निढाल आया था फिर टपकती रही सीने पे ये शबनम कैसी याद आई न कभी तेरा ख़याल आया था कहकशाँ मेरे दरीचों में उतर आई थी मेरे साग़र में तिरा अक्स-ए-जमाल आया था अब न वो ज़ौक़-ए-वफ़ा है न मिज़ाज-ए-ग़म है हू-ब-हू गरचे कोई तेरी मिसाल आया था