इतना कोई जहाँ में कभू बेवफ़ा न था मिलते ही मेरे मुझ से ये दिल आश्ना न था अब जूँ सरिश्क ख़ाक से सकता नहीं हूँ उठ आगे मैं दिल की आँख से इतना गिरा न था नासेह जो ये नसीहत-ए-बे-जा न मैं सुनी मा'ज़ूर रख तू मुझ को मिरा दिल बजा न था मरने की तरह मैं ने जो ये इख़्तियार की देखा तो ज़िंदगी में मज़ा कुछ रहा न था जो कुछ कहें ये तुझ को 'यक़ीं' है सज़ा तिरी बंदा जो तू बुतों का हुआ क्या ख़ुदा न था