जब भी उन से कलाम होता है हर सुख़न ना-तमाम होता है इश्क़ जिस के हज़ार मा'नी हैं एक सादा पयाम होता है वो नफ़स जिस में तेरी याद न हो आशिक़ी में हराम होता है ग़म की अज़्मत न जानने वालो ग़म का भी इक मक़ाम होता है कूचा-ए-दोस्त का हर इक ज़र्रा क़ाबिल-ए-एहतिराम होता है मौत गो तल्ख़ है मगर इस से इक सुकून-ए-दवाम होता है आलम-ए-बे-ख़ुदी में ऐ 'जौहर' उन से अक्सर कलाम होता है