जान कर हम ने जान-ए-वफ़ा आप को इक नज़र ही में दिल दे दिया आप को आज यूँ दिल ने दी है सदा आप को जैसे अपना बना ही लिया आप को देख कर आइना आप शर्मा गए देखता रह गया आइना आप को आप और मै-कदा वाइ'ज़-ए-मोहतरम हम समझते रहे पारसा आप को जाँ-ब-लब था मगर जी उठा देख कर अब मसीहा कहूँ या ख़ुदा आप को चीर कर सीना कैसे दिखाऊँ भला दिल का शीराज़ा बिखरा हुआ आप को कौन करता भला आप का सामना किस में जुरअत थी जो देखता आप को इस क़दर शो'लगी 'दर्द' अशआ'र में लोग कहते हैं आतिश-नवा आप को