कुछ इस अंदाज़ से ग़म की मुरत्तब दास्ताँ कर लें हम उन को राज़-दाँ कर लें वो हम को राज़-दाँ कर लें तबस्सुम ज़ेर-ए-लब नज़रें झुकी शरमाए शरमाए इसी अंदाज़ से ज़ेर-ए-नगीं सारा जहाँ कर लें उन्हें मालूम क्या जेहद-ओ-अमल क्या है कशाकश क्या ज़मीं पर बैठे बैठे जो तवाफ़-ए-आसमाँ कर लें सदा आने लगी उन की हमारे दिल के ज़ख़्मों से लहू के क़तरे क़तरे को अब उन की दास्ताँ कर लें हमारी आबला-पाई की अज़्मत पूछते क्या हो अगर चाहें तो हम ज़र्रों को रश्क-ए-कहकशाँ कर लें कोई नौ-वारिदान-ए-सेहन-ए-गुलशन से ज़रा कह दे चमन की पत्ती पत्ती को अब अपना मेज़बाँ कर लें जो राज़-ए-हुस्न से वाक़िफ़ न हों ऐ 'दर्द' दुनिया में ज़रा वो जुरअत-ए-नज़्ज़ारा-ए-दीदा-वराँ कर लें