जाने किस दौर की सज़ा हूँ मैं इब्तिदा हूँ कि इंतिहा हूँ मैं अपनी धड़कन से कर मुझे महसूस सिर्फ़ साँसों का सिलसिला हूँ मैं टूटना ही मिरा मुक़द्दर है ख़्वाब हूँ या कि आइना हूँ मैं मुझ को सुन ले क़ुबूल भी कर ले एक नन्ही सी इल्तिजा हूँ मैं ज़िंदगी से अजल के दामन तक चंद लम्हों का फ़ासला हूँ मैं कोई झोंका मिटा न पाया जिसे नाम वो रेत पे लिखा हूँ मैं ज़िंदगी मुझ से हार जाएगी आज़माइश की इंतिहा हूँ मैं मुझ से क़ाएम है रौनक़-ए-हस्ती ख़ुद की हस्ती से ही ख़फ़ा हूँ मैं अब जो सोया तो सो ही जाऊँगा उम्र भर जागता रहा हूँ मैं जिस्म की क़ैद में रहा हूँ कभी और कभी जिस्म से रिहा हूँ मैं