जाने क्या ऐसा उसे मुझ में नज़र आया था मुझ से मिलने वो बुलंदी से उतर आया था कोई तो गर्मी-ए-हसास से मिलता उस से इतने दिन बा'द तो वो लौट के घर आया था वो मिरे पाँव का चक्कर था कि मंज़िल थी मिरी घूम-फिर कर वही हर बार खंडर आया था वो मिरे साथ था सहरा हो कि दरिया 'फ़र्रुख़' उस के होते हुए क्या लुत्फ़-ए-सफ़र आया था