वक़्त के इंतिज़ार में वो है जुस्तुजू-ए-शिकार में वो है सीना-ए-राज़दार ही में नहीं दीदा-ए-आश्कार में वो है आईना साफ़ हो तो देख उसे नक़्शा-ए-दिल-फ़िगार में वो है उस के क़ब्ज़े में काएनात सही फ़ुक़रा की क़तार में वो है सर पे दस्तार-ए-फ़ज़ल है लेकिन जुब्बा-ए-तार-तार में वो है बे-कराँ ज़ेहन ओ दिल की है वुसअत जिस्म-ओ-जाँ के हिसार में वो है उस की चारों तरफ़ किताबें हैं हल्क़ा-ए-ग़म-गुसार में वो है पेश-ए-ज़ालिम सदा-ए-हक़ यानी नरग़ा-ए-सद-हज़ार में वो है क़िला-ए-बे-बसर में तुम महफ़ूज़ ख़ुद-कलामी के ग़ार में वो है ख़ाक तुम पा सकोगे ख़ाक उसे आब ओ बाद ओ शरार में वो है लम्हा-हा-ए-सुकूँ में उस की तलाश साअत-ए-इज़्तिरार में वो है पैरवी उस की है अबस 'राही' ख़ुद ही राह-ए-फ़रार में वो है