जाने क्या थी बात मुझे कुछ याद नहीं ख़त्म हुई कब रात मुझे कुछ याद नहीं दिल में जीने की इक ख़्वाहिश होती थी अब हैं जो हालात मुझे कुछ याद नहीं गर्म रुतों में मैं ने दुआएँ माँगी थीं कब आई बरसात मुझे कुछ याद नहीं बचपन में इक खेल तो मैं ने खेला था जीत हुई या मात मुझे कुछ याद नहीं मैं तो उस का साथ निभाती आई हूँ क्या क्या थे सदमात मुझे कुछ याद नहीं