जानता है तू हमारी रिफ़अ'तों को आसमाँ है हमारी ख़ाक-ए-पा से ये चमकती कहकशाँ क्या डराएँगी मुझे ये चंद काली बदलियाँ बिजलियों के साए में पल कर हुआ हूँ मैं जवाँ रश्क से तुम इस तरह देखो न मेरा आशियाँ टूट कर तुम पर भी गिर सकती हैं यारो बिजलियाँ तुम जिन्हें काँटे कहा करते हो अहल-ए-गुल्सिताँ इस्मत-ए-गुल के यही होती हैं अक्सर पासबाँ तेरी महफ़िल में ख़मोशी भी है मेरा इम्तिहाँ मैं ज़बाँ रखते हुए भी हो गया हूँ बे-ज़बाँ बात भी सुनना उन्हें मेरी गवारा अब नहीं जिन के अफ़्साने को दी हैं ख़ून-ए-दिल से सुर्ख़ियाँ इस लिए फेरी है शायद मेरी जानिब से नज़र देख पाओगे न तुम मेरी निगाह-ए-ख़ूँ-चकाँ ये ख़ुलूस-ओ-मेहर-ओ-उल्फ़त तो हसीं अल्फ़ाज़ हैं जिन के मा'नी में छुपी हैं ज़िंदगी की तल्ख़ियाँ हम न होंगे फिर भी ये दुनिया इसे दोहराएगी हम ने लिख दी है ग़ज़ल में अपने दिल की दास्ताँ बुझ चुका था तेरी फ़ुर्क़त में दिल-ए-'साक़िब' मगर तेरी यादों ने किया हर गोशा-ए-दिल ज़ौ-फ़िशाँ