जानते हैं अहल-ए-दिल ला-जवाब हैं हम लोग दहर के शबिस्तान में माहताब हैं हम लोग नर्म गर्म हाथों में इक गुलाब हैं हम लोग ठंडे ठंडे मौसम का आफ़्ताब हैं हम लोग देखने में वैसे तो इक हबाब हैं हम लोग हाँ मगर हर इक लम्हा इंक़लाब हैं हम लोग ख़ूँ के प्यासे ज़ालिम को दिल-फ़िगार क़ातिल को आइना दिखाने में कामयाब हैं हम लोग हर्फ़-ओ-लफ़्ज़-ओ-मा'नी की जिस में बहती है गंगा पढ़ना चाहे तो दिल की इक किताब हैं हम लोग इल्म-ओ-फिक्र-ओ-हिकमत की शमएँ हम जलाते हैं फ़न्न-ए-इल्म-ओ-हिकमत में बे-हिसाब हैं हम लोग जिस को पी के दुनिया सब झूम झूम उठे 'नादिर' अहल-ए-हक़ की महफ़िल की वो शराब हैं हम लोग