जब अपने दिल पे अपना कुछ इख़्तियार देखा बेगाना-ख़ू हसीं को बेगाना-वार देखा पैहम तजल्लियों की मुझ में सकत कहाँ थी नज़रें चुरा चुरा कर सूए-निगार देखा आज अपनी बे-ख़ुदी को इरफ़ाँ की रौशनी में उस माह-ए-सीम-तन का आईना-दार देखा तेरी इनायतों से अंजाम-बीं नज़र में आग़ाज़-ए-इश्क़ ही में अंजाम-ए-कार देखा ये भोली भोली सूरत ऐ चाँद फिर भी तू ने मेरी तरफ़ से अपने दिल में ग़ुबार देखा हुस्न-ए-शबाब-पर्वर किस दर्जे सेहर-ज़ा है देखा तिरा ज़माना ऐ गुल-ए-एज़ार देखा उस शोख़ की गली में मंज़ूर-ए-तफ़्ता-जाँ को फिर बे-क़रार पाया फिर अश्क-बार देखा