जब भी निगाह-ए-साक़ी दिल को टटोलती है अरमाँ भी डोलते हैं निय्यत भी डोलती है वो आइने में ऐसे महसूस हो रहे हैं अंगड़ाई ले के जैसे तस्वीर बोलती है किस वक़्त से ख़ुशी को आवाज़ दे रहा हूँ देखें वो नाज़नीं कब दरवाज़ा खोलती है जाने ये क्या हुआ है दोशीज़ा-ए-ख़िरद को घबरा के देखती है शर्मा के बोलती है इक वक़्त था 'अदम' जब वो ख़ूद न बोलते थे इक वक़्त ये है उन की तस्वीर बोलती है