जब भी रस्ते पे ग़ौर करता हूँ पहले ख़तरे पे ग़ौर करता हूँ टहनियों को हरा-भरा रखना पत्ते पत्ते पे ग़ौर करता हूँ ख़ूबसूरत तो उस के हाथ भी हैं पर मैं चेहरे पे ग़ौर करता हूँ उस की बोली समझ नहीं आती सिर्फ़ लहजे पे ग़ौर करता हूँ जब तिरे शहर से गुज़रता हूँ चप्पे-चप्पे पे ग़ौर करता हूँ ज़र्रे-ज़र्रे में वो दिखाई दे ज़र्रे-ज़र्रे पे ग़ौर करता हूँ