जब भी सीने में किसी बुत को सजाया हम ने इक हिजाब आप के चेहरे से उठाया हम ने नाम लेने से तिरा बाज़ न आया फिर भी दिल-ए-कम्बख़्त को समझाया बुझाया हम ने तेरी तस्वीर पे कुछ सोच के अक्सर अपना नाम लिख लिख के कई बार मिटाया हम ने एक एहसास की बंदिश के सिवा कुछ भी नहीं आप के प्यार से इस राज़ को पाया हम ने कभी इस दिल के वरक़ पर जो लिखी थी तहरीर तेरा ख़त पढ़ के उसे आज मिटाया हम ने आज किस दर्जा बुलंदी पे है क़िस्मत अपनी आप की बज़्म में दिल अपना जलाया हम ने 'राजे' हम किस से कहें कौन सुनेगा फ़रियाद इस जहाँ में कोई इंसान न पाया हम ने