जज़्बा-ए-हमसरी हर रुख़ से अयाँ होता है तेरी महफ़िल में जहाँ मेरा बयाँ होता है आइना होता है जब मेरे मुक़ाबिल ऐ दोस्त तेरी सूरत तिरा रुख़ इस से अयाँ होता है इक हसीं फूल का पैकर है सुहानी शब है फिर मिरे सीने में इक दर्द जवाँ होता है देखना जानिब-ए-गुल-ज़ार ज़रा अहल-ए-क़फ़स बात क्या है ये उधर कैसा धुआँ होता है मैं तिरा आइना हूँ तू है मिरा अक्स-ए-हसीं ज़र्रे-ज़र्रे से तिरा जल्वा अयाँ होता है मेरे दिल में है वहीं मस्कन-ए-याद-ए-ग़म-दोस्त टीसें उठती हैं जहाँ दर्द जहाँ होता है राह-ए-उल्फ़त का तसव्वुर भी कभी ऐ 'राजे' अहल-ए-दानिश के लिए बार-ए-गराँ होता है