कौन जाने कि तख़य्युल में हैं पैकर कितने बुत तराशेगा अभी और ये आज़र कितने हम ने इक क़तरे का एहसान गवारा न किया पी गए लोग ख़ुदा जाने समुंदर कितने याद आते ही तिरी आए ख़यालों के हुजूम एक पैकर से तराशे गए पैकर कितने हो वो मज़हब का लबादा कि सियासत का लिबास लोग फिरते हैं यहाँ भेस बदल कर कितने शहर फूलों का जिसे हम ने समझ रक्खा था हम पे फेंके गए उस शहर में पत्थर कितने जो कुछ इन आँखों ने देखा है वही क्या कम था और देखेंगे अभी देखिए मंज़र कितने एक साक़ी के न होने से है माहौल उदास आज तोड़े गए मयख़ाने में साग़र कितने बिजलियाँ गिरतीं चमन पर तो कोई बात न थी आतिश-ए-गुल ने जलाए हैं यहाँ घर कितने दिल वो क़तरा है कि हस्ती नहीं जिस की महदूद इसी क़तरे में हैं पोशीदा समुंदर कितने एक तुम ही नहीं दुनिया-ए-अदब में 'जौहर' हैं इसी बह्र में क्या जानिए गौहर कितने