जब चाहे कोई तोड़ दे ऐसे तो नहीं हैं मिट्टी के हैं मिट्टी के खिलौने तो नहीं हैं बे-मेहरी-ए-अहबाब का शिकवा नहीं मुझ को अहबाब हैं रहमत के फ़रिश्ते तो नहीं हैं माथे पे शिकन और परेशान हैं ज़ुल्फ़ें ये आप किसी फ़िक्र में उलझे तो नहीं हैं इन काली घटाओं को मैं पहचान रहा हूँ बादल जो गरजते हैं बरसते तो नहीं हैं मोती की तरह आब हैं चेहरों से नुमायाँ ये लोग कहीं डूब के उभरे तो नहीं हैं तदबीर से तक़दीर का रिश्ता नहीं मिलता हम हाथ धरे हाथ पे बैठे तो नहीं हैं क्या ग़म है जो दिल आप का तोड़ा है किसी ने दुनिया में 'शमीम' आप अकेले तो नहीं हैं