जब धुन में अपनी मंज़िल की चल पड़ते हैं दीवाने लोग कब हाइल को हो दरिया हो कब रोक सकें फ़रज़ाने लोग चेहरों पर हम ने देखी है शादाब बहारें गो अक्सर पहलू में लिए फिरते हैं मगर अब भी कितने वीराने लोग तक़्सीर थी चश्म-ए-नम की मिरी या तेरी निगाह-ए-लुत्फ़ की थी अब रोज़ बनाते चलते हैं हर बात पे कुछ अफ़्साने लोग सहबा में कहा वो मस्ती है जो तेरी नज़र से बरसती है तिरी आँख के साग़र छल्कें जब क्यों जाएँगे मय-ख़ाने लोग दर्द है सब का अपना अपना इस को मैं कैसे बाँटूँ दुनिया की इक रस्म निभाने आए दिल बहलाने लोग प्यार के सोते ख़ुश्क हुए सब आँख का पानी भर ही गया मैं क्या समझूँ कौन है अपने कौन यहाँ बेगाने लोग शम्अ' एक है मेरी नज़र में जिस से ये दिल रौशन है उन की बात अलग है जो हर शम्अ' के हैं परवाने लोग दिल की जिस ने बात कही वो हार गया जग की बाज़ी दिल में कुछ है लब पर कुछ ये करते हैं फ़रज़ाने लोग इस शहर में अब तो 'हबीब' कहीं भी रस्म-ए-वफ़ा का नाम नहीं आओ जा कर वहाँ बसें हम सब हों जहाँ अनजाने लोग