मुझे आमाजगाह-ए-नावक-ए-बेदाद रहने दे जो इस का नाम बर्बादी है तो बर्बाद रहने दे सरिश्त-ए-इश्क़ लज़्ज़त-आश्ना-ए-तल्ख़-कामी है मैं नाशाद-ए-तमन्ना हूँ मुझे नाशाद रहने दे नहीं जब सुब्हा-ओ-ज़ुन्नार के फंदे में गीराई मुझे दैर-ओ-हरम के दाम से आज़ाद रहने दे अभी से क्यों बनी जाती है चश्म-ए-नाज़ बेगाना फ़रेब-ए-आरज़ू कुछ दिन सितम-ईजाद रहने दे किया है किन उमीदों पर फ़राहम आशियाँ मैं ने ख़ुदारा मौसम-ए-गुल तक मिरे सय्याद रहने दे हमें आज़ादी-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र का इद्दआ तो है कोई ग़ारत-गर-ए-ईमाँ अगर आज़ाद रहने दे दिल-ए-बर्बाद से ये चश्मक-ए-चश्म-ए-तरब क्यों है करम-ना-आश्ना को ख़ूगर-ए-बेदाद रहने दे