जब ख़याल-ए-गिर्या-ए-पैहम हुआ अपने दिल का और ही आलम हुआ वो नहीं सुनते हमारे दिल की बात शौक़-ए-अर्ज़-ए-मुद्दआ' अब कम हुआ जान नज़्र-ए-आरिज़-ए-ताबाँ हुई दिल असीर-ए-गेसू-ए-पुर-ख़म हुआ अश्क गिर कर दामन-ए-महबूब पर इफ़्तिख़ार-ए-दीदा-ए-पुर-नम हुआ रात गुज़री आ गई सुब्ह-ए-फ़िराक़ ऐश का सामान अब बरहम हुआ चारागर मौक़ा तग़ाफ़ुल का नहीं ज़ख़्म-ए-दिल अब क़ाबिल-ए-मरहम हुआ मेरे दिल की लाश उट्ठी शान से हसरतों का धूम से मातम हुआ बन गया काबा वही दिल के लिए जिस जगह सर अपना 'हामिद' ख़म हुआ