जब कोई तीर हवादिस की कमाँ से आया नग़्मा इक और मिरे मुतरिब-ए-जाँ से आया एक नज़्ज़ारे ने मेरे लिए आँखें भेजीं दिल किसी कारगह-ए-शीशा-गिराँ से आया जब भी इस दिल ने तिरे क़ुर्ब की दौलत चाही एक साया सा निकल कर रग-ए-जाँ से आया मैं न डरता था अनासिर की सितम-कोशी से ख़ौफ़ आया तो बस इक उम्र-ए-रवाँ से आया क्या करूँ ख़िलअत ओ दस्तार की ख़्वाहिश कि मुझे ज़ीस्त करने का सलीक़ा भी ज़ियाँ से आया मैं तो इक ख़्वाब को आँखों में लिए फिरता था ये सितारा मिरे पहलू में कहाँ से आया