जब मैं किरदार तक नहीं आया घर से बाज़ार तक नहीं आया उस को रक्खा ग़ज़ल के लहजे में फिर भी इज़हार तक नहीं आया ऐसे मंसूर की क़यामत क्या जो कभी दार तक नहीं नहीं आया जाने किस किस का घर जला होगा आज अख़बार तक नहीं आया ज़िंदगी उस के नाम ऐसे की हर्फ़ इंकार तक नहीं आया