जब मुझे कोई दुआ दे मुस्कुराने के लिए मैं समझता हूँ दवा है ग़म भुलाने के लिए ग़म न खा दिल ना-तवाँ मुश्किल मसाइब देख कर हैं हवादिस आशिक़ों को आज़माने के लिए इक तबस्सुम भी तिरा काफ़ी है जाँ महशर तलक हम फ़क़ीरों की बक़ा बिगड़ी बनाने के लिए जो पिरो कर दे रहा हूँ मोतियों से शायरी मुस्तइद इतना नहीं सब कुछ सुनाने के लिए इक तमाशा सा समझ कर वो कहीं चलते बने रक़्स करते आए हम जिन को लुभाने के लिए इस मोहब्बत के चमन में इक नशेमन की है चाह गर 'जमाली' को इजाज़त हो बनाने के लिए