जब से अपने घर के बाम-ओ-दर से निकले हैं कैसे कैसे मंज़र पस-मंज़र से निकले हैं नर्म ज़मीं और पानी के मुहताज नहीं हैं हम हम तो वो कोंपल हैं जो पत्थर से निकले हैं कोई तो अपने जैसा अपने अंदर है मौजूद अपनी ज़ात के बाहर किस के डर से निकले हैं शोर की चादर के पीछे है ख़ामोशी का रक़्स सन्नाटे आवाज़ों के पैकर से निकले हैं किस से जंग लड़ेंगे किस को फ़त्ह करेंगे हम दुश्मन के हथियार ख़ुद अपने घर से निकले हैं ना-मानूस फ़ज़ाओं को 'अश्फ़ाक़' न दो इल्ज़ाम ख़ौफ़ के जो भी रस्ते हैं अंदर से निकले हैं