जब से देखा है बना गोश-ए-क़मर में तिनका फाँस की तरह खटकता है जिगर में तिनका नेज़ा-बाज़ी पे हमें अपनी न धमका ऐ तुर्क हम समझते हैं इसे अपनी नज़र में तिनका आतिश नाला-ए-बुलबुल ये चमन में भड़की न बचा नाम को सय्याद के घर में तिनका ख़ार-मिज़्गाँ को नज़र भर के न देखा मैं ने पड़ गया उड़ के मिरे दीदा-ए-तर में तिनका सुन के आमद तिरी आँखों से उठा लेते हैं देखते हैं जो पड़ा राहगुज़र में तिनका गिर्द उस बहर-ए-सफ़ा के मैं फिरा करता हूँ रहता है गर्दी में जिस तरह भँवर में तिनका आह-ए-सोज़ाँ ने जलाए तिरे जंगल 'सय्याह' नाम को भी न रहा एक शजर में तिनका