जब से कि बुतों से आश्ना हूँ बेगाना ख़ुदाई से हुआ हूँ क्यूँ कर कहूँ आरिफ़-ए-ख़ुदा हूँ आगाह नहीं कि आप क्या हूँ जब हिज्र में बाग़ को गया हूँ मैं आतिश-ए-गुल में जल-बुझा हूँ फ़ुर्क़त में जो सर पटक रहा हूँ मशग़ूल-ए-नमाज़-ए-किबरिया हूँ मुँह ज़र्द है तिनके चुन रहा हूँ ऐ वहशत क्या मैं कहरुबा हूँ बेगाना हूँ क्यूँ कर आश्ना से बेगानों से मैं भी आश्ना हूँ मुँह उन का नहीं है शुक्र वर्ना हर बुत कहता कि मैं ख़ुदा हूँ उम्मीद-ए-विसाल अब कहाँ है उस गुल से ब-रंग-ए-बू जुदा हूँ क्यूँ दोस्त न ख़ुश हों जाए मातम सीमाब की तरह मर गया हूँ ख़िल्क़त ख़ुश हो जो मैं हूँ पामाल गुलज़ार-ए-जहाँ में क्या हिना हूँ हँस दूँगा दम में मिस्ल-ए-गुल आप ग़ुंचे की तरह से गो ख़फ़ा हूँ आतिश-क़दमी से जलते हैं ख़ार ऐ क़ैस मैं वो बरहना-पा हूँ करते हैं गुरेज़ मुझ से मनहूस बे-शुबह मैं साया-ए-हुमा हूँ हूँ क़ाफ़िला-ए-अदम से आगे इस राह में नाला-ए-दरा हूँ 'नासिख़' की ये इल्तिजा है यारब मर जाऊँ तो ख़ाक-ए-कर्बला हूँ