जब तिरी याद में मचलता है दिल सँभाले नहीं सँभलता है चश्म-ए-पुर-नम पे उस की हैराँ हूँ कैसे पत्थर का दिल पिघलता है उस में आया तिरे शबाब का रंग तेरे हाथों जो जाम ढलता है मुझ तक आने की राह रौशन है न जले शम्अ' दिल तो जलता है क्यों पतंगे को शम्अ' की है तलाश जलने वाला तो यूँ ही जलता है दौर-ए-मय पर निगाह है किस की मस्त आँखों का दौर चलता है दिल में मेरे कहाँ अंधेरा है आरज़ू का चराग़ जलता है तुम को आए कि या न आए रास वक़्त तो करवटें बदलता है सिलसिले आरज़ू के चलते हैं दिल का अरमान कब निकलता है जैसी तेरी नज़र बदलती है वैसे दुनिया का रुख़ बदलता है लड़खड़ाया तो पा गया मंज़िल जो भी सँभला है हाथ मलता है जज़्बा-ए-दुश्मनी भी आज 'हबीब' पहलू-ए-दोस्ती में पलता है