जहाँ उस ने जफ़ा की इंतिहा की वही मेराज थी अपनी वफ़ा की तुम्हारा हुस्न है मेरी इबादत जो तुम आए तो याद आई ख़ुदा की मोहब्बत जिस को रास आ जाए उस को ज़रूरत क्या दुआ की या दवा की न था जब मैं तो वो तशरीफ़ लाए ज़हे मक़बूलियत मेरी दुआ की मज़ा आया शराब-ए-तुंद का सा तबीअत उन की जब बरहम हुआ की मोहब्बत ज़िंदगी की वर्ना ऐ दोस्त अबस है उम्र ने भी गो वफ़ा की कमी थी कौन सी दिल की तड़प में कि उलझन दीन-ओ-दुनिया की अता की घटा छाई हुई है मय-कदे पर ये कैफ़िय्यत है चश्म-ए-सुर्मा-सा की अब आओ भी कि है हम से तुम्हारे ये गर्मी बज़्म की मस्ती फ़ज़ा की 'हबीब' उस की तरफ़ से ख़ुद कशिश है ज़रूरत क्या है तुझ को रहनुमा की