ज़ुल्फ़-ए-माज़ी को फिर सियाह करें इश्क़ में आओ जाँ तबाह करें छोड़ कर ये सुकून की बातें बे-क़रारी की और चाह करें हर तरफ़ है बुझी बुझी दुनिया जब इधर या उधर निगाह करें फिर हुआ ये ग़मों ने घेर लिया जुस्तुजू थी कभी कि आह करें बे-इरादा ही ख़ुद चले आएँ काश ऐसा कोई गुनाह करें सादगी उन पे सज नहीं सकती उन से कह दो कि कज कुलाह करें वक़्त ख़ुशबू बदल के महकेगा वो जो 'निकहत' मुझे गवाह करें