जब ज़मीर-ओ-ज़र्फ़ के सौदे न थे यूँ सर-ए-बाज़ार हम बिकते न थे मुफ़लिसी आँसू बहाती रह गई भूक थी बाज़ार था पैसे न थे कुछ भरम रखने को रखते राब्ता गो कि पैमान-ए-वफ़ा सच्चे न थे किस में जुरअत थी लगाता बोलियाँ हम कभी बाज़ार में सस्ते न थे वो उठाते किस लिए दुश्वारियाँ मेरे घर तक मरमरीं रस्ते न थे वक़्त ने कितना बदल डाला मिज़ाज वर्ना हम पहले कभी ऐसे न थे कुछ तो है 'अजमल' ख़मोशी का सबब आप अफ़्सुर्दा कभी रहते न थे