ज़ेब-ए-गुलशन न बने रौनक़-ए-वीराना बने कितने होश्यार थे जो इश्क़ में दीवाना बने जुरअत-ए-दीद अगर मेरी तमाशा न बने दर-हक़ीक़त मिरा अफ़्साना फिर अफ़्साना बने कुछ पतंगों ही पे मौक़ूफ़ नहीं जान-ए-वफ़ा जो भी आ जाए तिरी बज़्म में परवाना बने कितने दिलचस्प हैं उस शोख़-नज़र के अंदाज़ कोई दीवाना न बनता हो तो दीवाना बने दिल ख़ुलूस-ए-ग़म-ए-उल्फ़त से है ख़ाली वर्ना इश्क़ अफ़्साना बना कर भी न अफ़्साना बने दिल की दुनिया की उलट फेर इलाही तौबा जितना आबाद किया जाए ये वीराना बने काश इक रब्त रहे उन की नज़र से 'बिस्मिल' कभी आईना बने दिल कभी पैमाना बने