कभी अहल-ए-जुनूँ भी मस्लहत से काम लेते हैं तुम्हें जब याद करते हैं ख़ुदा का नाम लेते हैं वो मस्त-ए-नाज़ जब दुज़्दीदा नज़रों से पिलाता है ख़ुदी वाले भी दस्त-ए-बे-ख़ुदी से जाम लेते हैं क़यामत दम-ब-ख़ुद है ग़म्ज़ा-ए-तुरकाना शश्दर है ख़ुदा के सामने वो आज मेरा नाम लेते हैं रह-ए-उल्फ़त में हर हर गाम पर लग़्ज़िश है 'मैकश' को सुना ये है कि वो गिरते हुओं को थाम लेते हैं